पीएनएन ब्रेकिंग — देवभूमि में बांग्लादेसियो की घुसपैठ। प्रशासन ने चलाया आधा अधूरा चाबुक।

पांवटा साहिब — शहरभर के दूर दराज के इलाको में बाग्लादेसियो की घुसपैठ का सिलसिला रूकने का नाम नही ले रहा हैं अभी हाल ही में विहिप व बजरंगदल ने जैसे ही सक्रियता दिखाई तो प्रशासनस ने सात दिनो के अन्दर रामपुर घाट के समीप बसे बाहरी राज्य के लोगो को खदेडने का थोडा बहुत ड्रामा तो रचा किन्तु शहर को पूर्णतया इन घुसपेैठियो से मुक्त कराने में नाकामयाब साबित हो रहा है।

इधर बातापुल पर भारी तादाद में बाहरी राज्यो के लोग बिना किसी वैरीफिकेशन के खासकर बाग्लादेश के घुसपैठियो की संख्या बढ गयी है। यहां सैकडो की संख्या मे इन लोगो ने पहले तो झुग्ग्यिां डाली और अब स्थिति यह हो गयी हे कि पक्के स्ट्रक्चर खडे करने शुरू कर दिए है। जिससे स्थानीय वासियो को भारी परेशानियो का सामना करना पड रहा है। जरा जरा सी बात पर एकत्र होकर झगडा करने से बाज नही आते। खासबात तो यह भी है कि दिन में कबाडी आदि का काम करने वाले ये लोग रात्रि. के अधंकार में दोपहिया वाहनो पर निकलते है और चोरी चकारी कर स्थानीय आमजन को परेशानियो में डालते है। हैरानी की बात यह भी है कि इन झुग्गियो में रंगीन टीवी, दोपहिया वाहन, चार पहिया वाहनो के भी मालिक है।

इससे भी ज्यादा हैरानी की बात है कि प्रशासन आखो पर पट्टी बांधे धृतराष्ट्र की मुद्रा में नजर आ रहा है। साथ ही गान्धी जी तीन बन्दरो वाली कहावत भी चरितार्थ होती दिखाई दे रही है।

सनद रहे कि प्रशासन ने अतिक्रमण कारियो पर चाबुक चलाना शुरू किया था किन्तु दो तीन दिन बाद ही स्थिति जस की तस हो गयी है। सरकारी जमीन पर सूर्य ढलते ही कुर्सियां लगा दी जाती है सामने जो पक्के स्ट्रक्चर खडे कर रखे है वे भी बीस से तीस फुट तक सरकारी जमीनो पर कव्जा किए हुए है किन्तु प्रशासन के लोग इधर से आखे मूंद लेते है। थोडी बहुत जेसीबी चलाई किन्तु दूसरे ेही दिन स्थिति जस की तस रही।

देखने में तो यह भी आ रहा है कुछेक पार्षद अपना वोट बैक बढाने के लिये बाहरी राज्य के लोगो को शरण दे रहे हैं और कुछेक बिरादरीवाद के चलते अधिकारियो को काम करने से पहले ही फोन कर देते है ताकि उनका वौट बैक खराब ना हो जाए।

देखना तो अब यह होगा कि प्रशासन की आखे कब खुलती है इन्ही सब बातो को चलते कुछेक सामाजिक संस्थाओ ने सरकारी जमीनो पर कव्जे को लेकर पीआईएल डालने की तैयारियो में जुटे हुए है। सम्भवतया वहां प्रशासन को जबाब देना भारी पड सकता है।

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