पांवटा साहिब :— होली मेला की तीसरी सांस्कृतिक संध्या हांलाकि हारमनी आफ पाइन्स नामक पुलिस बैण्ड के नाम रही जिन्होने बेहतर से बेहतरीन अपनी अपनी कलाओ का प्रदर्शन कर आम जन मानस का मन मोह लिया।
तीसरी संध्या के सांस्कृतिक कार्यक्रम सुर, लय और ताल का बेहतरीन संगम देखने को मिला और पहले देशभक्ति से ओतप्रोत गाने पर तो श्रोताओ के रोगटे तक खडै हो गए जो वास्तव मे संगीत की गंगा में डुबकी लगाने की मंशा से आए थे। ओर हो हल्ला वाले तो हो हल्ला तक ही सीमित रहे जैसा कि आम तौर पर होता चला आया है।
बीते दो दिन की सांस्कृतिक संध्याओ को यदि तीसरी सांस्कृतिक संध्या से तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो तीसरी सांस्कृतिक संध्या ने बीते दो दिनो की संध्याओ को धो डाला।
दोनो दिनो के सांस्कृतिक कार्यक्रम में वाध्य यंत्रो की ध्वनि गायक से अधिक तीव्र थी और गायक को जरूरत से ज्यादा पांचवे पिच पर जाकर गाना पड रहा था। ठीक इसी प्रकार नाटी किंग के आयोजन मे भी यही रूप देखने को मिला।
किन्तु तीसरी सांस्कृतिक संध्या में लीक से अलग हटकर वास्तव में श्रोताओ को संगीत के उस माहौल में सराबोर कर दिया जहां गायकी और गानो में दम खम, आवाज का जादू, वाध्य यंत्र वादको का अपने वाध्य यंत्र पर नियंत्रण और जनता तक वह ही ध्वनि पहूंच रही थी जिसे कलाकार पहूंचाना चाहते थे।
खाकी के कलाकारो द्धारा समस्त गाने लीक से अलग हटकर गाए गये हर गायक की आवाज को अलग से सुना जा सकता था साथ ही सामूहिक गान की ध्वनियां भी स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती थी माइक को मुंह से कितनी दूर रखना है और किस सुर पर कितनी पास रखना है वह कलाकारी भी हारमनी आफ पाइन्स के कलाकारो में देखी गयी जिस कारण उनका आयोजन, उनकी प्रस्तुति और गानो के चयन ने श्रोताओ का मन मोह लिया।
हालांकि स्थानीय कलाकारो को मंच देने की मंशा भी सफल रही किन्तु निर्णायक मण्डल भी कुछ अच्छी सलेक्शन करने में नाकामयाब रहे दूसरी बात यह भी रही कि स्थानीय कलाकारो जो भी प्रस्तुति दी गयी अच्छी थी किन्तु रोजमर्रा की रियाज और रियाज में वाध्य यंत्रो का अभाव भी सरेआम देखने को मिला कोई उपर सुर खीच रहा था तो कोई नीचे ही गा रहा था कुल मिलाकर आडीशन के नाम पर भीड भाड से बचने का नाटक था इसके अलावा और कुछ नही।