पीएनएन सम्पादकीय :— गुर्गे ने दे दिया नेताजी की जड़ो में तेल।

इस लेख में लेखक नागेन्द्र तरूण को एक कहावत अनायास दिलो—दिमाग में घूम गयी वह है कि ” आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास” कहने का तात्पर्य है कि नेताजी का गुर्गा लोगो समझाने की नीयत से गया था किन्तु सत्ता की हनक और अपने चेले चन्टारो पर नेताजी का नियंत्रण ना होना नेताजी को ही घातक पड गया। जो हुआ सो हुआ किन्तु नेताजी का ग्राफ जरूर गिर गया। अब 2027 के चुनाव में यदि नेताजी चुनाव लडते है तो केदारपुर भूपपुर आदि के सैकडो मतदाता इस बात को ध्यान रखेगे कि नेताजी का एक गुर्गा अहिसात्मक आन्दोलन में धमकाने की नीयत से पहूंचा था और तकरीबन दो दर्जन से अधिक परिवारो को हडकाया था। जो कि सोशल मीडिया के जमाने मे सोशल मीडिया की सुर्खिया बन गया। और नेता की जडो में तेल दे गया।

चिन्तनीय विषय तो यह है कि नेताजी अब किस मुंह से इन परिवारो से वोट मांगने जाऐगे और जा भी पाऐगे या नही और चुनावी समय में लोग पुरानी खुन्नस वाजी जरूर निकालते है तो वोटर तो वोटर है इसको खास किसी से प्यार नही होता। अपनी खुन्नस वैसे बेशक ना निकाल सके। किन्तु पर्दे के पीछे जरूर निकालेगा।

दर असल सोशल मीडिया पर छाए हुए वीडियो में नेताजी का एक गुर्गा लोगो को धमका रहा है । हालांकि नेताजी का गुर्गा अपने आपको नेताजी का वफादार होने का प्रमाण पत्र खोजने का प्रयास कर रहा था किन्तु हो उल्टा गया। नेताजी के वोटो मे सेधमारी कर गया। जो रहे सहे वोट थे वे भी गए। वेैसे तो नेताजी बीते लगभग 30 सालो में एक बार ही विजय का परचम लहरा पाए है और वो भी ”बेचारा” शव्द लोगो के/ मतदाताओ के दिलोदिमाग में घुस गया था। और भाजपाई नेता को सबक भी सिखाना ​था। तो लोगो ने बाजी पलट दी थी। और नेताजी उस विजयश्री को पचा नही सके। सत्ता के घमण्ड और अंहंकार में अपनो को खो दिया। जो बीस से तीस वर्षो से साए की भांति साथ खडे थे नेताजी ने उन सबसे मुंह मोड लिया।

कहावत है कि यदि सलाहकार सही ना हो तो वह नैया डुबो ही देता है। एक ऐसे सलाहकार ने नेताजी का पल्लू पकड लिया जो आज कल प्रापर्टी की दलाली कर रहा है। ने नेताजी को सुझाव दे डाला कि राजनीति में दस आते है और दस जाते है बस नेताजी के दिलोदिमाग में यह बात घर कर गयी और अपनो से ही दूरी बनाने लग गये और जब अपने ही दूर हो गये तो नया नौ दिन पुराना सौ दिन वाली कहावत चरितार्थ होने लगी। पिछलग्गू/ चाटुकार/ निजहित साधने वाले करोडो कमा गये और जो भारी भरकम थे समाज में मान प्रतिष्ठा रखते थे उन्होने नेताजी का व्यवहार देख मुह मोड लिया। बचा कुचा काम यह गुर्गा कर गया। वोटो में सेध लगवा गया।

युवक का व्यवहार आन्दोलनकारियो से ठीक नही था प्यार और सम्मान के साथ बैठकर समझा बुझा सकता था बातचीत हर आन्दोलन का सही रास्ता है। हालांकि नेताजी ने डेमेज कन्ट्रेाल करने के लिये पानी पर मलाई जमाना चाहा किन्तु गुर्गे का व्यवहार लोगो के दिलो दिमाग मे घर कर गया जिसका खामियाजा 2027 में तो भुगतना तय ही माना जा रहा है। देखना है कि अपने गुर्ग को क्या दण्ड देकर इस हुए नुकसान की भरपाई करवाते है। जो कि असम्भव है। नेताजी को चाहिए कि ऐसे लोगो से दूरी बनाकर रखे जो वफादारी के चक्कर में आबरू उछालकर आ जाते है।

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