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पांवटा साहिब — शहर की दवा निर्माता कम्पनी फार्मा फोर्स में हुई घटना के बाद प्रदेश के समूचे बुद्धिजीवियो के माथे पर चिन्ता की लकीरे है। कि आखिरकार किस प्रकार कानून को धता बता दी गयी और पैसे की खनक के आगे सरकार, प्रशासन, जिला प्रशासन, और कानून सब के सब देखते ही रह गये और पुलिस बाट जोहती रह गयी कि कोई तो शिकायत करे या व्यान दे।
इस घटना के बाद से आम जन को ऐसा महसूस होने लगा है कि कानून व्यवस्था, प्रशासनिक एवं पुलिस सहित इस प्रकार की हो गयी हैजिस प्रकार नतृकी के कोठे पर तबले की थाप पर जिस प्रकार नतृकी ठुमके मारती है ठीक वही मंजर पांवटा साहिब में देखने को मिला। अव्वल तो प्रदेश होई कोर्ट तक मामला नही पहूंचा अन्यथा लोगो को यह भी उम्मीद बची है कि उच्च न्यायालय इस मामले में स्वत: संज्ञान ले ले। कोई एक्टीविस्ट, समाजसेवी, अभी तक ऐसा सामने नही आ सका है कि ड्रग्स माफियो को कानून का पाठ पढा सके। और मृतक न्याय से वंचित रह गया।
अव्वल तो इस मामले में गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज होना था। कई सफेदपोशो की गिरफ्तारी होनी थी और कम्पनी की मिट्टी भी पलीत होनी थी किन्तु एक ही झटके में सब पर पानी फेर दिया गया
बताते चले कि पांवटा साहिब की फार्मा फोर्स में एक सत्ताईस वर्षीय सूरजपुर निवासी परमिन्दर सिंह की मौत संदिग्ध परिस्थितियो में होती है। युवक के परिजनो को तीन घन्टै तक इत्तला तक नही दी जाती। ना ही पुलिस को सूचित किया जाता है और निजी हस्पताल में ले जाकर इलाज करवाने काप्रयास किया जाता है और फिर रैफर करवा दिया जाता है। सरकारी हास्पीटल में नही ले जाया जाता, दूसरे दिन सबूत और साक्ष्य मिटाने की नीयत से कम्पनी को बन्द कर दिया जाता है ताकि कोई गवाही ना देदे। पुलिस को भी दो घन्टे तक मौका —ए— वारदात पर नही पहूंचने दिया जाता। आक्रोशित भीड नारेवाजी करती है तो कम्पनी प्रबन्धन के उच्चाधिकारी चम्पत होते है समूचा प्रशासन और पुलिस के आला अफसर कई घन्टो तक नही आते। भीड त्यागी मुर्दावाद, और फार्मा फोर्स हाय हाय के नारे भी लगाती है। भीड आक्रेोशित भी होती है। और अन्त में एक ही झटके में सारे मामले पर पानी फेर दिया जाता है और युवक न्याय से वंछित रह जाता है। पुलिस शिकायत कर्ता या व्यान देने वाले का इन्तजार करती है। और थोडी ही देर में परिजन मात्र और मात्र चन्द पैसे लेकर रफूचक्कर हो जाते है थोडी ही देर बाद संस्कार कर दिया जाता है। सेटिग के समय पुलिस और प्रशासन बैठक से उठकर चले जाते है। पुलिस फिर भी गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने और कम्पनी प्रबन्धन की लापरवाही का मामला दर्ज करने के लिये इन्तजाररत रहती है किन्तु पुलिस भी खाली हाथ लौट आती है और मामला रफा दफा हो जाता है।
ड्रग्स माफिया तबले पर थाप पर थाप दे रहा है और नृतकी कत्थक कर रही है। और समूची व्यवस्था, समाज, बुद्धिजीवी वर्ग तमाशा देख रह है। और माफियाओ के हौसले बुलन्दी की ओर अग्रसर है।