पांवटा साहिब :— औद्योगिक क्षेत्र गोन्दपुर की फार्मा फोर्स में हुई संदिग्ध मौत का मामला तीस लाख मे निपटा दिया गया। ऐसा सूत्र बता रहे है। ना तो कोई प्राथमिकी दर्ज हुई ओैर ना ही कोई शिकायत कर्ता सामने आया है। हो हल्ला मचाने वाले अपने अपने घर चले गये । पोस्ट मार्टम के बाद युवक का अन्तिम संस्कार भी कर दिया गया।
हालांकि मामले में प्रथम दृष्टया ही संदिग्धता झलक रही थी। अब पुलिस भी क्या करे। अपने व्यान और किसी भी प्रकार की शिकायत करने वाला कोई सामने नही आया है। पुलिस ताक में बैठी है कि कोई अपना व्यान दर्ज करवाए और शिकायत करे।
मामला बीते रोज फार्मा फोर्स में हुई उस संदिग्ध घटना का है जिसमें सूरजपुर निवासी एक सत्ताईस वर्षीय युवक की संदिग्ध परिस्थितियो में मौत हुई। मामले को कम्पनी प्रबन्धन ने इस प्रकार हैण्डल किया कि बवाल खडा होते देख कम्पनी ही बन्द कर दी गयी ताकि कोई साक्ष्य या गवाही ना मिल जाए। दूसरी ओर युवक की मौत के बाद तीन घन्टे तक परिजनो को सूचित तक नही किया गया और सरकारी हास्पीटल की बजाए निजी हस्पताल मे ले कर गये साथ ही रैफर शव्द लिखवाकर मामले को इस प्रकार दबाया कि पुलिस के हाथ कोई सबूत ना लग सके।वैसे तो साक्ष्य मिटाने की भी संविधान में धाराए है किन्तु जब कोई शिकायत कर्ता ही नही तो ऐसे में पुलिस अपने आपको बेबस समझ रही है।
और जब बवाल खडा हुआ तो युवक की जान की कीमत कम्पनी प्रबन्धन ने तीस लाख लगा दी। जब कि युवक मात्र सत्ताईस वर्षीय था अेार कम्पनी मे प्रतिमाह तीस हजार रूपये की नौकरी करता था इस हिसाब से एक वर्ष मे चार लाख रूपये कमाता था और आगामी 32 वर्षो की सेलरी जोडी जाय तो वह करोड रूपये से उपर ही बैठती है किन्तु कम्पनी प्रबन्धन ने मात्र और मात्र तीस लाख रूपये में मामला ऐसा निपटाया कि पूरा का पूरा रायता तो फैलना था उसे जड समेत धो डाला ओर पुलिस की कार्यवाही गिरफ्तारी कोर्ट कचहरी आदि आदि से जड समेत निपटा दिया।
और आखिर कार मामला तो निपटना ही था जब एक ड्रग्स माफिया बीच चौराहे पर बिना अनुमति के सभी नियमो को ताक पर रख कर पुलिस की ममटी बनवा सकता है और प्रशासन पूरी तरह से धृतराष्ट्र की भूमिका अदा करता रहे और उसका फीता भी आईपीएस अफसर से कटवा दिया जाता तो समझा जा सकता है कि वह कितना बडा माफिया होगा। सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।