पांवटा साहिब :— सरकार की पकड से अनियंत्रित हो चुके शिक्षण माफियाओ ने फिर से एक बार अपनी मन मर्जी शुरू कर दी है। अभिभावको की जेबो पर डाका डाला जा रहा है और मंहगी शिक्षा के नाम पर मन मर्जी के दाम वसूले जा रहे है। जिसमें फीस बढोत्तरी, किताब कापियां, पैन पेन्सिल ज्योमेट्री बाक्स स्कूल बैग और तो और स्कूल यूनिफार्म के लिये भी शहर भर में दलाल टाइप के लोगो की दुकाने खोल रखी है जिसमें कि जिस स्कूल के प्रबन्धन की जिस दुकान से सैटिंग होगी उस निजी स्कूल की किताबे सिर्फ और सिर्फ उसी बुक सेलर पर मिलेगी। ठीक इसी तर्ज पर स्कूल यूनिफार्म भी मंहगे दामो पर उसी दुकान पर मिलेगी जहां स्कूल प्रबनधको की सैटिंग होगी इससे भी ज्यादा तो इस बार हैरत की बात यह भी देखने को आ रही है कि जूतो और साक्स के लिये भी सैटिंग कर डाली है।
इधर बढी हुई फीस, फीस के नाम पर लगातार सन्देश भेजना अभिभावको को जलील करना, बसो में मन मर्जी भाडा वसूल करना और पशुओ की भांति बच्चो के साथ व्यवहार करना आम बात हो गयी है।
खास बात तोयह भी है कि आरटीओ, पुलिस प्रशासन तो कभी कभार कार्यवाही कर अपनी ड्यूटी की इतिश्री कर लेता है किन्तु प्रशासनिक अधिकारी आखो पर पट्टी बांधे रहते है और लोगो को सरेआम खुलेआम लूटा जा रहा है और खुल्ला खेल मुरादाबादी हो रहा है।
ऐसा नही है कि शिकायते प्रशासन के पास नही आती और उनको भान नही है। यदि कोई अभिभावक अध्यापक अध्यापिका या प्रबन्धन के दुर्यव्यवहार के कारण निजी स्कूल से स्कूल लीविग प्रमाण पत्र लेना चाहे भी तो उसे देने में कई कई माह चक्कर कटवाए जाते है और टीसी नही दी जाती। इस बात की शिकायते स्थानीय प्रशासन के पास बीते पांच सालो में कई मर्तबा पहुंची है किन्तु प्रशासन की चाटुकारिता करने वाले शिक्षण माफियाओ पर कार्यवाही के नाम पर ढाक के तीन पात ही दिखाई देते है और कोई ठोस नीति या नियम भी नही बनाए जाते।
इससे भी ज्यादा हैरत की बात तो यह है कि स्कूली छुट्टी केसमय शहर में जो उत्पात, स्कूलीबसो की भागमभाग, रास्ते जाम से आम जन को दोचार होना ही पडता है।
गौरकिया जाय तो सभी निजी स्कूलो की संस्थाऐ, ट्रस्ट आदि आदिजो भी पंजीकृत है ने नो प्रोफिट नो लांस पर शिक्षण संस्थान चलाने की सरकार से अनुमति लेरखी है किन्तु दस्तावेजो में झोल पैदा कर और व्हाट कालर बाली बदमाशी दिखाते हुए दस्तावेजो में लूप होल देखते हुए स्कूली सम्पत्ति खरीद कर ली जाती है और सुनने में तो यह भी आया है कि अध्यापक अध्यापिकाओ सेदो रजिस्टरो में हस्ताक्षर करवाए जाते है एक रजिस्टर में ज्यादा वेतन दिखाया जाताहै और हकीकत में कम वेतन दिया जाता है और अध्यापक अध्यापिकाओ का भी शोषण हो रहा है किन्तु बढती बेरोजगारी और दो जून की रोजी रोटी के चक्कर में अध्यापक अध्यापिकाऐ मन मसोस कर रह जाते है औरआवाज उठाने की जहमत तक नही उठा पाते।
बडी हैरत की बात तो यह भी है कि कक्षाओ में बच्चो के साथ भेदभाव बदसलूकी मानसिक प्रताढनाओ का दौर चलता है जिसे बच्चे अपने घर आकर नही बताते और उन्ही बच्चो को स्कूली समय के बाद मंहगे दामो पर ट्यूशन भी उन्ही अध्यापक अध्यापिकाओ द्धारा दिया जाता है जो कक्षा में पढने में कमजोर होते है और मोटी रकम फिर वसूल ली जाती है।
खास बात यह भी है कि एक स्कूल तो ऐसाचल रहा है जिसका कोई खेल का मैदान नही है और किसी दूसरे के खाली पडै खेत को खेल का मैदान जवानी जमाखर्च पर शिमला से आए अधिकारियोको दर्शा दिया गया और अधिकारी भी जेबे गरम कर मुर्गा और अगूरी का स्वाद ले सिखक लिए हालांकि बात पुरानी है किन्तु सत्य है।
और अन्ततोगत्वा अभिभावक परेशान है अपने अबोध बच्चो के अच्छे भविष्य के लिये अपना सब कुछ न्योछावर करते हुए बच्चो कोपढा रहे है और शिक्षण माफिया चांदी कूट रहा है।