पांवटा साहिब — वह ना तो रूकी, और ना ही झुकी। अपनी गति से चलती रही और अन्ततोगत्वा मंजिल हासिल कर ही ली। जो सोचा वह कर दिखाया। इसके पीछे अंकिता नेगी की सकारात्मक सोच, ना किसी से बदला लेने की नीयत और ना ही किसी के बारे में अपशव्दो का प्रयोग करना सिर्फ और सिर्फ ईमानदारी, और निष्ठा से अपने काम को बखूबी अंजाम देना ही ताउम्र प्राथमिकता रही जिसके चलते आज वह मात्र 25 वर्षीय उम्र उस मुकाम पर पहूंच गयी जहां पहूंचने के लिये कई जोडी चप्पले घिस जाती है।
अभी अभी फोन पर अंकिता नेगी से बातचीत हुई शुभकामनाऐ भी दी तो उन्होने बताया कि उनका जन्म फरवरी 2000 में उत्तराखण्ड के फकोट गांव में हुआ जमा दो की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद जर्नलिज्म करने का मन बनाया किन्तु घर की आर्थिकी कमजोर होने के कारण बीच में ही पढाई छोडनी पडी। और जैसे तैसे करके पांवटा आ गयी यहां आकर एक निजी चैनल में काम किया किन्तु किसी भी विवाद में नही पडी उनका फोकस सिर्फ उनके काम पर था। हालांकि इस दरम्यान राह में रोड़े अटकाने वाले कई आए किन्तु अंकिता ने किसी की परवाह नही की। इसी बीच गुरू महाराज के नेकदिल बन्दो ने अंकिता नेगी के जज्वे को देखते हुए पर्दे के पीछे से सपोर्ट भी किया और दीवार की भांति अंकिता के साथ खडे रहे। हर सुख में दुख में परेशानी में बीमारी में कभी भी कदम पीछे नही हटाया और इस बालिका को हिम्मत मिलती रही इसी दरम्यान ऐसे लोगो को भी नकारात्मक सोच वाले लोगो ने भडकाने का प्रयास किया और अपना ही खून फूकते रहे किन्तु ईश्वर को उन लोगो को जवाब भी देना था सो दे दिया और अंकिता नेगी के सपने को पूरा करते हुए लम्बी लकीर खीच डाली। और कुंए के मेढक मेढकी वही के वही रह गए किन्तु इस कशमकश वाली जिन्दगी से अंकिता नेगी के चेहरे पर कोई शिकन नही आई क्योकि उसकी मंजिल कुछ और ही थी जो कि हासिल कर ली।
अंकिता ने बताया कि उनके पिता एक साधारण व्यक्तित्व के मालिक है और वे खुद अपने पापा की लाडली भी हेै । पिता ने उनके कदमो को कभी भी रोकने का प्रयास नही किया और सदैव सकारात्मक सोच रखते हुए आगे बढने के लिये प्रेरित करते रहे और आज उनके ही आशीष का फल है कि जिस मुकाम पर वे पहूंची है।
अंकिता नेगी एक दबंग पत्रकार होने के साथ साथ तीखी आवाज की मालकिन भी है साथ ही निर्भयता निडरता, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी की मूरत भी है जिसका परिणाम सभी के सामने है। उनकी नेकनीयती को सलाम है।